निर्गुन्डी (FIVE LEAVED CHASTE) :
आज हम आपको All Ayurvedic के माध्यम से ऐसे पौधे के बारे में बताएँगे जो भयंकर से भयंकर स्लिपडिस्क से लेकर सर्वाइकल, गठिया, माइग्रेन तक 101 रोगों का रामबाण उपाय है। दरअसल हम बात कर रहे है निर्गुन्डी की, यह बहुत ही अमृतदाई पौधा है। निर्गुन्डी एक प्रतिजीव (एंटीबायोटिक) जड़ी है। यह समस्त विकारों और दर्द, कई प्रकार की चोट, साधारण बुखार और मलेरिया के उपचार में काम आती है
निर्गुन्डी को लोग अपने घर पर भी लगा सकते है। निर्गुन्डी को हिन्दी में सम्हालू और मेउड़ी, संस्कृत में सिनुआर और निर्गुण्डी, बंगाली में निशिन्दा, मराठी में निगड और निर्गण्ड, तैलगू में तेल्लागाविली, तमिल में नौची, गुजराती में नगड़ और नगोड़, मलयलम में इन्द्राणी, अंग्रेजी में फाईव लीवड चेस्ट (FIVE LEAVED CHASTE) के नामो से जाना जाता है।
निर्गुन्डी तासीर गर्म होती है। निर्गुण्डी कफवात को शान्त करती है। यह दर्द को दूर करती है और बुद्धि को बढ़ाती है। सूजन , घाव , बालों के रोग और हानिकारक कीटाणुओं को नष्ट करती है। पाचनशक्तिवर्द्धक, आम पाचन, यकृतउत्तेजक, कफ-खांसीनाशक। इसका उपयोग कोढ़, खुजली , बुखार , कान से मवाद आना , सिर में दर्द, साइटिका, अजीर्ण, कमजोरी, आंखों की बीमारी के लिए किया जाता है। आइये इसके 101 फायदों के बारे में जानते है।
➡ निर्गुन्डी (FIVE LEAVED CHASTE) के 101 चमत्कारी फायदे :
स्लिपडिस्क : सियाटिका, स्लिपडिस्क और मांसपेशियों को झटका लगने के कारण सूजन हो तो निर्गुण्डी की छाल का 5 ग्राम चूर्ण या पत्तों के काढ़े को धीमी आग में पकाकर 20 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में 3 बार देने से लाभ मिलता है। सबसे बड़ी बात क़ि स्लीपडिस्क की ये एकलौती दवा है।
सर्वाइकल : निर्गुन्डी अनेक बीमारियों में काम आती है। सर्वाइकल, मस्कुलर पेन में इसके पत्तो का काढा रामबाण की तरह काम करता है।
आधासीसी (माइग्रेन) अधकपारी : काली निर्गुण्डी के ताजे पत्तों के रस को हल्का सा गर्म करके 2-2 बूंद कान में डालने से आधेसिर का दर्द खत्म हो जाता है।
अस्थमा मे इसकी जड़ और अश्वगंधा की जड़ का काढा ३ माह तक पीना चाहिए।
दर्द नाशक : 25 ग्राम ग्वारपाठे का उपरी सूखी छाल, 10 ग्राम सूखी अर्जुन छाल, 10 ग्राम पीपर मूल, 10 ग्राम निर्गुन्डी के बीज, 10 ग्राम अश्वगंधा, 20 ग्राम त्रिफला, 20 ग्राम मूसली, 5 ग्राम मंडूर भस्म और 5 ग्राम अभ्रक भस्म को पीसकर इसे किसी सूती कपडे से छान कर रख ले। इसे पीड़ित व्यक्ति को दिन में दो बार 5-5 ग्राम की मात्रा में गाय के दूध के साथ देने से लाभ मिलता है। इस उपचार के दौरान इमली, बैंगन और शराब का सेवन न करें और यह उपचार गर्भवती स्त्री को नहीं देना चाहिए।
गठियावात के पारंपरिक उपचार के बारे में बता रहे है. इनका कहना है कि निर्गुन्डी की पत्तियों का 10-40 मी.ली रस देने अथवा सेंकी हुई मेथी का चूर्ण कपडे से छानने के बाद 3-3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पानी से लेने से वात रोग में आराम मिलता है। यह मेथी वाला नुस्खा घुटनों के वात में भी उपयोगी है। सौंठ के 20-50 मी.ली. काढ़े में 5-10 मी.ली. अरंडी का तेल डालकर सोने से पहले लेना भी लाभदायक होता है।
गले के अन्दर सूजन हो गयी हो तो निर्गुन्डी के पत्ते, छोटी पीपर और चन्दन का काढा पीजिये, 11 दिनों में सूजन ख़त्म हो जायेगी।
सूतिका ज्वर में निर्गुन्डी का काढा देने से गर्भाशय का संकोचन होता है और भीतर की सारी गंदगी बाहर निकल जाती है।
पेट में गैस बन रही है तो निर्गुंडी के पत्तो के साथ काली मिर्च और अजवाइन का चूर्ण खाना चाहिए ताकि गैस बननी बंद हो और पेट का दर्द ख़त्म हो और पाचन क्रिया सही हो जाए।
चोट, सूजन : निर्गुण्डी के पत्तों को पीसकर लेप बना लें। इस लेप को चोट या सूजन पर लेप करने से या चोट, सूजन वाले अंग पर इसकी पट्टी बांधने से दर्द में आराम मिलता है और घाव जल्दी ठीक हो जाता है।
अपस्मार (मिर्गी) : निर्गुण्डी के पत्तों के 5 से 10 बूंदों को दौरे के समय नाक में डालने से मिर्गी में आराम होता है।
अरुंषिका (वराही ): निर्गुण्डी के काढ़े से सिर को धोना चाहिए।
कान के रोग : निर्गुण्डी के पत्तों के रस को शुद्ध तेल में, शहद के साथ मिलाकर 1 से 2 बूंद कान में डालने से कान के रोग में लाभ मिलता है।
खांसी : 12 से 24 मिलीलीटर निर्गुण्डी के पत्तों के रस को शुद्ध दूध के साथ दिन में 2 बार लेने से खांसी दूर हो जाती है।
घेंघा : 14 से 28 मिलीलीटर निर्गुण्डी के पत्तों का रस दिन में 3 बार सेवन करें।
निर्गुण्डी की जड़ों के पीसकर नाक में डालना चाहिए।
बच्चों के दांत निकालने के लिए : निर्गुण्डी की जड़ को बालक के गले में लटकाने से दांत जल्दी निकल जाते हैं।
निर्गुण्डी (सम्भालु) की जड़ के छोटे-छोटे टुकड़े को काले या लाल धागे में माला बनाकर बच्चे के गले में बांध दें।
कफज्वर (बुखार) : निर्गुण्डी के पत्तों का रस या निर्गुण्डी के पत्तों का 10 मिलीलीटर काढ़ा, 1 ग्राम पीपल के चूर्ण के साथ मिलाकर देने से कफज्वर और फेफड़ों की सूजन कम होती है।
निर्गुण्डी के पत्तों के 30-40 मिलीलीटर काढ़े की एक मात्रा में लगभग आधा ग्राम कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर पीने से कफ के बुखार में आराम होता है।
निर्गुण्डी के तेल में अजवाइन और लहसुन की एक से दो कली डाल दें तथा तेल हल्का गुनगुना करके सर्दी के कारण होने वाले बुखार, न्यूमोनिया, छाती में जकड़न होने पर इस बने तेल की मालिश करने से लाभ होता है।
सूतिका बुखार : निर्गुण्डी का इस्तेमाल करने से सूतिका का बुखार में लाभ मिलता है तथा गर्भाशय का संकोचन होता और आंतरिक सूजन मिट जाती है।
सूजाक (गिनोरिया) : निर्गुण्डी के पत्तों का काढ़ा बनाकर सूजाक की पहली अवस्था में ले सकते हैं। यदि रोगी का पेशाब बन्द हो गया हो तो उसमें 20 ग्राम निर्गुण्डी के पत्तों को 400 मिलीलीटर पानी में उबाल लें। जब चौथाई काढ़ा शेष बचे तो इसे उतारकर ठंड़ा कर लें। इस काढे़ को 10-20 मिलीलीटर प्रतिदिन सुबह, दोपहर और शाम पिलाने से पेशाब आने लगता है।
श्लीपद (पीलपांव) : धतूरा, एरण्ड की जड़, निर्गुण्डी (सम्भालू), पुनर्नवा, सहजन की छाल और सरसों को एक साथ मिश्रित कर लेप करने से श्लीपद में आराम मिलता है।
मुंह के छाले ख़त्म करने के लिए निर्गुन्डी के पत्तो के रस में शहद मिलाकर उस मिश्रण को 3-4 मिनट मुंह में रखें फिर कुल्ला कर दीजिये। दो ही दिन में छाले ख़त्म हो जायेंगे.
निर्गुन्डी और शिलाजीत का मिश्रण शरीर के लिए अमृत का काम करता है।
निर्गुन्डी और पुनर्नवा का काढा शरीर के सारे दर्द ख़त्म करता है।
कमर को सही आकार में रखने के लिए निर्गुन्डीके पत्तो के काढ़े में 2 ग्राम पीपली का चूर्ण मिला कर एक महीने पीजिये.
स्मरण शक्ति बढाने के लिए निर्गुन्डी की जड़ का 3 ग्राम चूर्ण इतने ही देशी घी के साथ मिलाकर रोज चाटिये।
साइटिका में निर्गुन्डी के पत्तो क़ि चटनी को गरम करके सुबह शाम बांधना चाहिए या फिर इसका काढा पीना चाहिए।
स्वास रोग में पत्तो का रस शहद मिलाकर दिन में चार बार एक -एक चम्मच पीना चाहिए.
भंगरैया तुलसी और निर्गुंडी के पत्तो का रस अजवाईन का चूर्ण मिलाकर पीने से गठिया की सूजन और दर्द में बहुत लाभ होता है।
शक्ति बढाने के लिए निर्गुन्डी और सोंठ का चूर्ण दूध के साथ लेना चाहिए।
निर्गुन्डी सर्दी जनित रोगों में बहुत फायदा करती है।
निर्गुन्डी के काढ़े से रोगी के शरीर को धोने पर सभी तरह की बदबू, दुर्गन्ध ख़त्म हो जाती है।
भैषज्य रत्नावली के अनुसार निर्गुन्डी रसायन शरीर का कायाकल्प करने में सक्षम है यह लम्बे समय तक मनुष्य को जवान बनाए रखता है, इसे बनने में पूरे एक माह लगते हैं, इसे किसी अनुभवी वैद्य से ही बनवाना चाहिए।
निर्गुन्डी के तेल से बालो का सफ़ेद होना ,बालो का गिरना , नाडी के घाव और खुजली जैसी बीमारियों में बहुत लाभ पहुंचता है किन्तु इसे भी किसी जानकार वैद्य से ही बनवाना उचित रहता है।
शारीरिक शक्ति : निर्गुण्डी 40 ग्राम और 40 ग्राम शुंठी को एक साथ पीस लें। इसकी 8 खुराक बना लें। रोजाना इसकी एक खुराक दूध के साथ सेवन करने से शक्ति में वृद्धि होती है।
नारू (गंदा पानी पीने से होने वाला रोग) : निर्गुण्डी के पत्तों के 10-20 मिलीलीटर रस को सुबह-शाम पिलाने से और पत्तों से सेंक करने से लाभ होता है।
सभी रोगों के लिए : निर्गुण्डी को शिलाजीत के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है।
घाव : निर्गुण्डी के पत्तों से बनाये हुए तेल को लगाने से पुराने से पुराना घाव भरने लगता है।
निर्गुण्डी की जड़ और पत्तों से निकाले हुए तेल को लगाने से दुष्ट घाव, पामा, खुजली और विस्फोटक (चेचक) आदि से उत्पन्न घाव ठीक हो जाता है।
बन्द गांठ : निर्गुण्डी के पत्तों को गर्म करके बन्द गांठ पर बांधने से गांठ बिखर जाती हैं।
टिटनेस : निर्गुण्डी का रस 3 से 5 मिलीलीटर दिन में तीन बार शहद के साथ देने से टिटनेस में लाभ मिलता है।
बुखार : निर्गुण्डी के 20 ग्राम पत्तों को 400 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब 100 मिलीलीटर के लगभग शेष बचे तो इस काढ़े को उतार लें। इस काढे़ में 2 ग्राम पीपल का चूर्ण बुरककर सुबह-शाम 10-20 मिलीलीटर पिलायें। इससे जुकाम (प्रतिश्याय), बुखार और सिर के भारीपन में लाभ होता है।
निर्गुण्डी के 10 ग्राम पत्तों को 100 मिलीलीटर पानी में उबालकर सुबह-शाम पीने से लाभ होता है।
14 से 28 मिलीलीटर निर्गुण्डी के पत्तों के रस को शहद के साथ दिन में 2 बार देने से लाभ मिलता है।
अपच : निर्गुण्डी के पत्तों के 10 मिलीलीटर रस को 2 पिसी हुई कालीमिर्च और अजवायन के साथ सुबह-शाम सेवन करने से पाचन शक्ति ठीक हो जाती है और दर्द कम होकर पेट की वायु बाहर निकल जाती है।
मा-सिक-धर्म का कष्ट के साथ आना : निर्गुण्डी के बीजों के 2 ग्राम चूर्ण की फंकी सुबह-शाम लेने से मा-सिक-धर्म ठीक समय पर बिना किसी कष्ट के आता है।
यकृत (लीवर) वृद्धि : निर्गुण्डी के पत्तों का रस 2 मिलीलीटर और गाय का पेशाब लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिलाकर देना चाहिए।
निर्गुण्डी के पत्तों के 2 ग्राम चूर्ण को काली कुटकी व रसोत लगभग आधा ग्राम के साथ सुबह-शाम देना चाहिए।
सिर के रोग : निर्गुण्डी के पत्तों को पीसकर उसकी टिकिया बना लें, फिर इस टिकिया को कनपटी पर बांधने से सिर के दर्द में राहत मिलती है।
निर्गुण्डी के फल के 2-4 ग्राम चूर्ण की फंकी दिन में 3 बार देने से स्नायु (नाड़ी) और मस्तक के रोग कम होते हैं।
कमजोरी : निर्गुण्डी के तेल की मालिश करने से पैरों की बीमारी और कमजोरी दूर होती है।
कंठ (गले) का दर्द और मुख पाक (जीभ के छाले) : निर्गुण्डी के पत्तों का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से लाभ होता है।
निर्गुण्डी के तेल को मुंह, जीभ तथा होठों में लगायें अथवा इसके तेल को हल्के गर्म पानी में मिलाकर मुंह में थोड़ी देर रखने से लाभ पहुंचता है।
गले की खराश में, गले के पक जाने पर तथा गले की सूजन होने पर हल्के गुनगुने पानी में निर्गुण्डी के तेल को मिलाकर तथा थोड़ा पिसा हुआ नमक मिलाकर कुल्ला करने से लाभ मिलता है।
फटे होठों पर निर्गुण्डी के तेल को लगाने से आराम मिलता है।
टी.बी. (राज्यक्ष्मा) : निर्गुण्डी के पंचांग (फल, फूल, तना, पत्ती और जड़) का रस 12-14 मिलीलीटर को शुद्ध घी में मिलाकर दूध के साथ सुबह-शाम प्रयोग करना चाहिए।
लम्बी आयु के लिए : निर्गुण्डी के 1 लीटर रस को धीमी आग पर तब तक पकायें जब तक यह गुड़ की चाशनी के समान गाढ़ा न हो जाये। बाद में इस अवलेह (मिश्रण) को 7 दिनों तक लें। इसे 3 महीने तक सेवन करने से बुढ़ापा देर से आता है और आयु लम्बी होती है। खाने में केवल दूध का ही प्रयोग कर सकते हैं। ध्यान रहे कि इस प्रयोग को करने से पहले अपने आप को दमा, खांसी, क्षय (टी.बी.), वमन (उल्टी), विरेचन (दस्त) आदि रोगों से बचाकर रखना जरूरी है।
वात रोग, कमर दर्द : 14 से 28 मिलीलीटर निर्गुण्डी के पत्तों का रस सुबह-शाम वात की बीमारी और कमर के दर्द में इस्तेमाल करें।
शरीर से खून का निकलना : निर्गुण्डी के तेल को घाव या कटे हुए भाग पर लगा सकते हैं। यदि घाव बन जाये तो पिसी हुई हल्दी बुरककर पट्टी बांध देनी चाहिए।
श्वास रोग : निर्गुण्डी के पत्तों के रस को हल्की आग पर चढ़ाकर गाढ़ा कर लें। इसे 7 दिनों तक लगातार देने से खांसी, दमा और टी.बी. का रोग मिट जाता है।
पुनरावर्तक ज्वर : सिनुआर (निर्गुण्डी) के पत्ते और हरीतकी को गाय के पेशाब में पीसकर सुबह-शाम सेवन करने से पुनरावर्त्तक बुखार के साथ प्लीहा में होने वाली वृद्धि में लाभ होता है।
सिनुआर के पत्तों का रस, कुटकी और रसौत के साथ सुबह-शाम सेवन करने से पुनरावर्तक बुखार में लाभ होता है।
कफ-पित्त ज्वर : निर्गुण्डी का रस या पत्तों का काढ़ा पीपल के साथ लेने से कफ के बुखार में लाभ मिलता है।
निर्गुण्डी के पत्तों को गर्म करके फेफड़ों पर लगाने से फेफड़ों की सूजन कम हो जाती है।
चातुर्थक ज्वर (चौथे दिन आने वाला बुखार) : निर्गुन्डी के ताजे पत्तों का रस 14 से 28 मिलीलीटर को 5-10 ग्राम शहद के साथ दिन में 3 बार देना चाहिए। इससे चातुर्थक ज्वर दूर हो जाता है।
जीभ की जलन और सूजन : मूसली और निर्गुण्डी के फल को मिलाकर चबाने से जीभ का दर्द, छाले और जीभ का फटना बन्द हो जाता है।
कान के कीड़े : निर्गुण्डी के ताजे पत्तों के रस को कान में डालने से कान के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
कान का बहना : निर्गुण्डी के तेल की 2-2 बूंदे कान में डालने से कान में से मवाद बहने के रोग से छुटकारा मिलता है।
पेट में पानी का भरना (जलोदर) : सिनुआर (निर्गुण्डी) के पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर सुबह-शाम देने से लाभ होता है। सिनुआर, करंज, नीम और धतूरे के पत्तों को पीसकर ठंड़ा-ठंड़ा पेट पर लगाने से पेट की सूजन में लाभ होता है।
वात रोग : श्वास, खांसी और ठंड़ में वात रोग होने पर 10 ग्राम निर्गुण्डी को गोमूत्र (गाय के मूत्र) में पीसकर खाने से लाभ होता है।
10 ग्राम निर्गुण्डी और मीठा तेल मिलाकर मालिश करने से सभी तरह के वात रोग दूर हो जाते हैं।
निर्गुण्डी के पत्तों को गरम करके बांधने से वादी की गांठें बैठ जाती हैं।
तालु (गलशुण्डी) रोग : तालु रोग को दूर करने के लिए निर्गुण्डी की जड़ चबाने से रोग ठीक हो जाता है।
तालु रोग दूर करने के लिए निर्गुण्डी और हारसिंगार की जड़ चबाने से गलशुण्डी (तालु) रोग में लाभ मिलता है।
शरीर को बलवान बनाए : निर्गुण्डी, सालममिश्री, तालमखाना, शतावरी और विदारीकन्द 40-40 ग्राम लेकर पीस लें। फिर इसके 20 ग्राम चूर्ण को 250 मिलीलीटर दूध में मिलाकर इलायची के साथ सुबह-शाम पीने से शरीर बलवान होता है।
जोड़ों के दर्द में (सन्धिवात, गठिया, आमवात, सन्धिशोथ के रोग) : निर्गुण्डी, लहसुन और सोंठ 25-25 ग्राम लेकर 1 लीटर पानी में काढ़ा बनाकर पीने से गठिया का दर्द दूर होता है।
निर्गुण्डी के पत्तों से निकाला हुआ तेल हल्का गर्म करके मालिश करने तथा कपड़ा बांधने से जोड़ों का दर्द, (सन्धिवात, गठिया, आमवात, सन्धिशोथ) में बहुत आराम मिलता है।
निर्गुण्डी के पत्तों के काढ़े को 14 से 28 मिलीलीटर सुबह, दोपहर और शाम देने से लाभ मिलता है।
10 से 20 मिलीलीटर सिनुआर के पत्तों का रस सुबह-शाम लेने से रोगी को लाभ मिलता है। साथ ही सिनुआर, करंज, नीम, और धतूरे के पत्तों को एक साथ पीसकर गर्म-गर्म लेप करने से भी लाभ मिलता है।
फोड़ा : निर्गुण्डी और करंज के पत्तों को पीसकर फोडे़ पर बांधने से फोड़ों की सूजन खत्म हो जाती है।
उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) : निर्गुण्डी 10 ग्राम, लहसुन 10 ग्राम और सोंठ का चूर्ण 10 ग्राम मिलाकर 400 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को 50-60 मिलीलीटर प्रतिदिन पीने से उच्चरक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) सामान्य होता है।
हाथ-पैरों की जलन : हाथ-पैरों की जलन होने पर सिनुआर (निर्गुण्डी) के पत्तों को अच्छी तरह से पीसकर हाथ-पैरों पर लेप करने से हाथ-पैरों की जलन समाप्त होती है।
उरूस्तम्भ (जांघों का सुन्न होना ) : निर्गुण्डी के पत्तों का काढ़ा बनाकर उसमें पीपल का चूर्ण डालकर पीने से जांघों की सुन्नता एवं हड्डियों में कफ का जमाव दूर होता है।
हृदय के ऊपर की झिल्ली की सूजन : निर्गुण्डी के पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन करने से हृदय के आवरण की सूजन में लाभ होता है।
कुष्ठ (कोढ़) : 10 ग्राम निर्गुण्डी के ताजे कोमल पत्तों को पीसकर 200 मिलीलीटर पानी में मिलाकर पीने से कुष्ठ (कोढ़) रोग में बहुत जल्दी आराम आता है।
साइटिका (गृध्रसी) : साइटिका रोग में 20 ग्राम निर्गुण्डी के पत्तों को 375 मिलीलीटर पानी में मन्द आग पर पकायें तथा चौथाई पानी रह जाने पर छान लें। इस काढ़े को 2 सप्ताह तक पीने से रोगी को लाभ होता है।
सिनुआर (सम्हालू, निर्गुण्डी) के पत्तों का काढ़ा रोजाना सुबह-शाम पीने से साइटिका का रोग दूर हो जाता है।
नाड़ी का दर्द : 100 मिलीलीटर निर्गुण्डी के रस को गाय के घी के साथ 3 दिनों तक सेवन करने से रोग में जल्द आराम मिलता है।
कण्ठमाला की सूजन : 10 से 20 मिलीलीटर सिनुआर के पत्तों का रस सुबह और शाम पीने से कण्ठमूल ग्रंथि शोथ (गले मे सूजन) में आराम होता है।
नागदन्ती की मूलत्वक (जड़ का रस) सुबह-शाम सिनुआर के पत्तो के रस और करंज के साथ सेवन करने से पूरा आराम मिलता है।
निर्गुण्डी के पत्तों का तेल बनाकर लगाने से हड्डी की लचक (हड्डी खिसक जाना) और कण्ठमाला रोग (गले की गांठे) मिट जाती हैं।
टांसिल का बढ़ना : निर्गुण्डी की जड़ चबाने से, नीम के काढ़े से कुल्ला करने से या थूहर का दूध टांसिल पर लगाने से टांसिल समाप्त हो जाती हैं।
➡ निर्गुन्डी सेवन की मात्रा :
निर्गुण्डी के पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर, जड़ की छालों का चूर्ण 1 से 3 ग्राम, बीज और फलों का चूर्ण 3 से 6 ग्राम तक ले सकते हैं।
➡ निर्गुन्डी के हानिकारक प्रभाव :
निर्गुण्डी को अधिक मात्रा में सेवन करने से सिर में दर्द , जलन व किडनी पर विपरीत बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
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